Sunday, November 18, 2012

कर्म का विज्ञानं


एक तरफ विज्ञान जहा पिण्डो के गति की व्याख्यया यांत्रिकी मे करता है वही अध्यात्म जीवों के गति(आवागमन, कर्मफलो) की व्याख्या कर्मयोग या कर्म के सिधान्तो से करता है 
चुकी दोनो ही सत्य के अनवेंसी है इसलिये दोनो के सिधान्तो मे समानता है

                           अध्यात्म                   विज्ञानं 

कर्मफल
किया गया कार्य (W)
अनन्तरफल
गतिज उर्जा
आगामीफल
स्थितिज उर्जा
ज्ञान
बल
कर्म
विस्थापन
त्रिगुण
द्रव्यमान
ध्यान
त्वरण
शक्ति
शक्ति (Power)
जड़ता
जड़त्व


१:- कर्मफल और किया गया कार्य
- अध्यात्म में कर्मफल से वही तात्पर्य है जो यांत्रिकी में किया गया कार्य (w,उर्जा) से है 

अर्थात उपलब्ध बल (सारीरिक,यांत्रिकी, प्राकृतिक आदि) का प्रयोग करके किसी विस्थापन को करने पर किया गया कार्य (w, उर्जा) प्राप्त होती है

जबकि उपलब्ध ज्ञान (या (अज्ञान,बुद्धि-कुबुद्धि,चतुराई-मूर्खता आदि) का प्रयोग करके किसी कर्म को करने पर कर्मफल प्राप्त होता है

कर्मफ़ल, ज्ञान और कर्म पर निर्भर होता है
(कठोपनिसद २-२-७)
कार्य, बल और विस्थापन पर निर्भर (समानुपाति) होता है
(w=f x d)
कर्मफ़ल अमृत (अविनासी) होते है
(मुण्डक उपनिषद् १-१-८)
(महाभारत व. . २३७-२७)
(वृहदारण्यकोपनिसद ४-४-२)
किया गया कार्य (उर्जा) अविनासी होती है (उर्जा संरक्षण का सीधांत)

२:-अनन्तरफल-गतिज उर्जा     ३:-आगामीफल-स्थतिज उर्जा

इसे जानने के लिए फल के आधार पर क्रियावो को जानना आवश्यक है.

फल के आधार  पर क्रियाये दो प्रकार की होती है
१:- अदृष्टफला- जिन क्रियावो का फल दिखाई नहीं देता है जैसे स्वर्ग-नर्क आदि

२:- दृष्टफला- जिन क्रियावो का फल दिखाई देता है ये क्रियाये दो प्रकार की होती है

(क) अनन्तरफला- वे सभी क्रियाये जो तत्काल फल देती है जैसे भोजन, गमन आदि
(ख) आगामीफला- वे क्रियाये जिनका फल आने वाले समय में मिलता है जैसे कृषि, सेवा आदि

जिसमे अनन्तरफल फलोदय के समय ही नष्ट  हो जाता है और कालान्तर फल उत्पन होकर ( फल मिलने  से पूर्व ही ) नष्ट हो जाने वाला है  (ईशादी नौ उपनिषद्,  पृष्ठ १२८, शंकरभास्य, गीता प्रेस)

:-अनन्तरफल-गतिज उर्जा:-

(क):- किसी पिण्ड की गति के कारण जो कार्य करने की क्षमता होती है उसे गतिज उर्जा कहते है तथा कर्म करने के साथ ही जो कर्मफल प्राप्त होता है उसे अनन्तरफल कहते है.

(ख):- दोनों का सम्बन्ध वर्तमान समय से है अनन्तरफल कर्म के साथ ही प्राप्त होता है और गतिज उर्जा पिंड की गति के साथ ही होती है

(ग):- अनन्तरफल उदय के समय ही नष्ट हो जाता है और गतिज उर्जा प्राप्त करते समय नष्ट (स्थतिज उर्जा मे परिवर्तित) हो जाती है

:-आगामीफल-स्थतिज उर्जा:- दोनों के लिए कर्म/विस्थापन भूतकाल में हो चुका होता है

(क) किसी वस्तु की विशेष स्थिति के कारण जो कार्य करने की क्षमता होती है उसे स्थतिज उर्जा कहते है तथा कर्म करने के उपरान्त भविष्य मे जो कर्मफल मिलता है उसे आगामी फल कहते है.

(ख):- पिंड को सामान्य स्तिथि से विशेष स्थिति में लाने के लिए भूतकाल में कार्य किया जा चूका होता है और यही कार्य पिंड में स्थतिज उर्जा के रूप में संचित रहती है, यह संचित ऊर्जा आने वाले समय में प्राप्त की जाती है
आगामीफल में कर्म पहले होता है और कर्मफल बाद में प्राप्त होता है

(ग):- जब स्थतिज ऊर्जा को प्राप्त किया जाता है तो वह नष्ट (गतिज ऊर्जा में परिवर्तित) हो जाती है और आगामी फल उत्पन होकर नष्ट हो जाता है

४:- ज्ञान - बल :-  

(क):- एक तलवार को १० न्यूटन बल के साथ, २ मीटर विस्थापित करके किसी को मार दिया जाता है तो इसमें होने वाले कार्य/ कर्मफल की विवेचना कीजिये ?

प्रश्न में २ मीटर, विज्ञानं के अनुसार विस्थापन है और अध्यात्म के अनुसार कर्म है, दोनों ही एक अर्थ को धारण किये हुए है

विज्ञान के अनुसार किया गया कार्य १० x २=२० जुल है जबकि अध्यात्म में १० न्यूटन के स्थान  पर कर्ता का ज्ञान (बदले की भावना,आत्मरक्षा,मानसिक रोग, युद्ध आदि) प्रभावी है 
 
किसी भी देश काल धर्म/समप्रदाय की न्याय व्यवस्था, कर्मफल (दंड) का आकलन करने के लिए कर्ता के बल की जगह ज्ञान का उपयोग करती है

(ख):- लोक में विधा(ज्ञान) जनित बल दुसरे बलों का पराभव करता है सरीर आदि का बल नहीं जैसे हाथी घोड़े आदि का शारीरिक बल मनुष्य के विधा(ज्ञान) जनित बल को नहीं दबा सकते

(ईशादी नौ उपनिषद्,  पृष्ठ ११७, शंकरभास्य, गीता प्रेस)

:- त्रिगुण - द्रव्यमान,             ९:- जड़ता जड़त्व

अध्यात्म मे किसी जीव की जड़ता और विज्ञान मे किसी पिण्ड का जड़त्व समानार्थी है

किसी जीव की जड़ता से तात्पर्य उसके हिलने-डुलने की इच्छा, या स्थिर बने रहना या आलसपन या अपनी स्थिति मे परिवर्तन ना होने देने का गुण आदि से है और यह गुण त्रिगुण पर निर्भर होता है जैसे तमोगुणी मे जड़ता सबसे ज्यादा और रजोगुणी मे उससे कम और सतोगुणी मे नही

विज्ञान मे पिण्ड का जड़त्व भी पिंड का अपनी स्थिति परिवर्तन का विरोध  करने वाले गुण से है, पिण्ड का द्रव्यमान जितना ज्यादा होगा उसका जड़त्व भी उतना ज्यादा होगा

अध्यात्म में जहा त्रिगुण जीव की जड़ता को परिभाषित करता है वही यांत्रिकी में द्रव्यमान पिंड के जड़त्व को , इसलिए जीव का त्रिगुण पिण्ड के द्रव्यमान के समतुल्य है

७:- ध्यान -- त्वरण-   ज्ञेय या लक्ष्य या गंतव्य की प्राप्ति के लिए दोनों शब्द समानार्थी है


किसी जीव मे ज्ञान, उसके त्रिगुण और ध्यान (concentration) पर निर्भर करता है
1:- सतत्व गुण से ज्ञान और रजो गुण से अज्ञान उत्पन होता है (गीता १४-१७
2:- तत्व ज्ञान के लिये ध्यानयोग मे दृंह स्थित होना चाहिये. (गीता १६-१)
किसी पिंड पर लगाया गया बल उसके द्रव्यमान और त्वरण के समानुपाति होता है (न्यूटन)

:- कर्म  --  विस्थापन-अध्यात्म में कर्म से वही तात्पर्य है जो यांत्रिकी में विस्थापन से है यांत्रिकी में चेतन प्राणियों द्वारा बल लगाकर किया गया सभी प्रकार का विस्थापन कर्म है

प्रतेक कर्म का प्रतिफल प्राप्त होता है (अध्यात्मिक ग्रंथ)
प्रतेक क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती है (न्यूटन)
ज्ञान और कर्म का विरोध पर्वत के समान अविचल है (अध्यात्मिक ग्रंथ)
इसे विज्ञान की  भाषा मे कहे तो कर्म, ज्ञान  के व्युत्क्रमानुपाति होता है
इसे प्रत्यक्ष भी देखा जाता है जैसे किसी संस्थान मे मैनेजर, इंजीनियर सूपरवाइज़र, लेबर आदि  का ज्ञान और कर्म
अध्यात्म की भाषा मे      
बल और विस्थापन का विरोध पर्वत के समान अविचल है
कार्य=बल xबिस्तापन  से 
बल 1/ विस्थापन


:- शक्ति(Power):-  अध्यात्म में भी शक्ति से वही तात्पर्य है जो विज्ञानं में है
अर्थात समय के सापेक्ष किया गया कार्य, कम समय में ज्यादा कार्य करने वाला शक्तिशाली, ज्यादा समय में कम कार्य करने वाला कमजोर होता है (P=W/T)


चेतन जगत के लिए चार प्रकार की शक्तियों का वर्णन है
१:- संकल्प शक्ति- यह परमात्मा की शक्ति है
२:- इच्छा शक्ति- यह योगी,यति,ऋषि,महर्षी, आदि की शक्ति है
३:- विचार शक्ति- ८४ लाख योनियों में केवल मनुष्य को प्राप्त है
४:-कार्यकारी शक्ति-यह सभी चौरासी लाख योनियों के जीवो में होती है
विज्ञानं में अनेक  प्रकार की शक्तियों का वर्णन है जैसे विधुत शक्ति , उष्मीय शक्ति,यांत्रिकी शक्ति, नाभकीय शक्ति आदि